STORYMIRROR

Anshu Shri Saxena

Abstract

3  

Anshu Shri Saxena

Abstract

अर्धनारीश्वर

अर्धनारीश्वर

1 min
461

दो दिनों से मन में फिर वही क्षोभ है

फिर वैसी ही भावनाओं का उबाल है !

पिछले सात सालों में क्या बदला ?

निर्भया से प्रियंका तक, बस यही सवाल है !

कुछ भी नहीं बदला

स्त्रियों में वही असुरक्षा की भावना 

और हैवानियत की वही पराकाष्ठा !


कल कुछ मोमबत्तियाँ जलीं

आज फिर कुछ मोमबत्तियाँ जलेंगी

कल एक मासूम प्रियंका जली

आज फिर कोई मासूम जलेगी

यह सिलसिला चलता रहेगा अनवरत

क्योंकि यही इस अभागे देश की नियति है


हमारे ही तथाकथित समाज ने

ऐसे हैवानों को जन्म दिया है

जिनके लिये स्त्री केवल देह है

रौंदने के लिये बस एक सामान

माँ, बहन, पत्नी किसी भी रिश्ते से ऊपर

बस एक निर्जीव हाड़ माँस का खिलौना


कब तक चलेगा इन हैवानों के दिमाग़ का फ़ितूर ?

कब तक नेता देंगे शर्मनाक बयान, होकर सत्ता के नशे में चूर !

पुलिस को नहीं क्यों बहन को फ़ोन लगाया ?

चार लोगों ने पकड़ा तो क्यों नहीं शोर मचाया ?

क्या कभी समझा उस असहाय नारी की पीड़ा को ?

कितनी थी वह विवश, शायद ज़िंदा ही जलने को


ख़ुद पुरुष होने के दंभ में चूर

क्या सदा पौरुष स्त्री पर ही आज़माओगे ?

पुरुष बन, क्या कभी स्त्री की व्यथा समझ पाओगे ?

पुरुष बनना है तो महादेव शिव बनो 

जब अर्धनारीश्वर बनोगे

तभी शायद स्त्री होने की पीड़ा समझ पाओगे !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract