गुब्बारे
गुब्बारे


लेकर चंद सांसें उधार
उसने भर दी गुब्बारों में
ये बिकें तो खरीद सकेगा
कुछ साँसें घर चराग़ों के लिए
अभी तो घूमेगा ये चक्का
दिनभर समय के चक्के सा
लेकर साँसें इस गली उस गली
हो पेट में चाहे कितनी खलबली
थक कर बैठ जाय
ेगा वो
फिर किसी नीम की छाँव में
कस लेगा पेट अपने साफे से
पेट की आग बुझेगी आब से
बड़ा खुदगर्ज़ है ये शख़्स भाईसाहब
ज़िन्दगी कमायेगा बेचकर साँसें अपनी
और गुनगुनाता जा रहा था साईकल पर
दो दीवाने शहर में, रात में या दोपहर में
आबु दाना ढूँढते है आशियाना ढूँढते है।