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Pushpa Pande

Drama

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Pushpa Pande

Drama

धरा

धरा

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एकधरा है, एक गगन है। 

फिर भी इतनी नफरत क्यूं है। 

धरा तो सबकी एक है। 


कितना सुंदर प्रभु ने किया धरा का श्रृंगार

कहीं हरियाली की चूनर ओढे

कहीं ओढे है पुष्पो के हार। 

उगते सूरज की लालिमा। 


बिंदिया है चंदा की

ओस की बूदों ने धरा पर जड़ दिये

सलमें सितारे हजार। 

रात केआंचल पर टांक दिये

टिम टिमाते तारे हजार। 


सावन आये तो हो जाये मदमस्त। 

जैसे सजी हो दुल्हन गहनो में हजार। 

हरी भरी वंसुन्धरा पर गिरती बूंदो की झंन्कार। 


कितना सुंदर प्रभु ने किया

धरती का श्रृंगार। 

हम तो सब है, हरियाली से जीवित। 

हरियाली नहीं तो कुछ न रहेगा। 


जीवन सूना सूना लगेगा। 

हरियाली ही है धरा का श्रृंगार। 


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