अक्ल समझदार हो गयी!
अक्ल समझदार हो गयी!


मासूम अक्ल जब से समझदार हो गयी,
जिंदगानी मानों मँझधार हो गयी,
सजदे के खुलते हाथों और कीर्तन के
जुड़ते हाथों में फँसकर,
ईश-आराधना भी मानों व्यापार हो गयी !
जब से ये अक्ल समझदार हो गयी,
जाति धर्म के इन दंगों में,
सियासी कुर्सी के घातक रंगों में,
इंसानियत तार-तार हो गयी !
मासूम बचपन को कहाँ भनक थी,
दुआ मांगो तो अल्लाह सुनेगा,
और प्रार्थना से भगवान मिलेगा ,
सियासत के समझौतों में,
मासूमियत कहीं खाक हो गयी,
द्वेष राग की अग्नि में जल कर,
जिजीविषा लाचार हो गयी !