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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

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दो बिंदु..

दो बिंदु..

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दो बिंदु लगाकर छोड़ दिया था..

कहानी का वो अंतिम पृष्ठ....

वो समानांतर दो बिंदु...

आकार में सीमित और छोटे,

पर सूचक थे कहानी के क्रमशः भाग के..

संभावनाओं के अथाह सागर को खुद में समाए हुए..

ये दो बिंदु रच सकते थे मेरी कहानी के अनगिन खण्ड..

छोटे दो बिंदु..!


फिर खींच दी एक बड़ी लकीर,

दोनों बिंदुओं के सिरों को जोड़ कर,

बना दी एक विशाल रेखा...

आकार और कद दोनों में कहीं विशाल..!

पर ये रेखा द्योतक थी...

कथा की समाप्ति की...

संभावनाओं के इति की...

जलाशय के स्थिर जल की भांति,

जहां कल्पना की उड़ान खत्म हो जाती है...!


छोटे बिंदु में समाए मेरे विचार अनन्त,

जबकि विशाल रेखा कथा की सीमा का अन्त..!


कभी-कभी छोटा होना/ सूक्ष्मता महानता की ओर अग्रसर करती है !



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