किस्सों की कथा !
किस्सों की कथा !
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किस्सों के भी तो कुछ किस्से होंगे,
नए पुराने जमानों के कुछ हिस्से होंगे!
नए नवेले कुछ सदियों पुराने,
गुजरे हैं सुनकर किस्से, जाने कितने जमाने,
कुछ आम कुछ खास, कुछ भीड़ के हिस्से,
हर गली मुहल्ले से निकले रोज नए किस्से,
सुनाना होता है जब किस्सों को अपनी आपबीती संसार को,
चुनती है कथायें, स्वयं अपने कथाकार को,
वरण करती है कथा अपना कलमकार,
जो उतार देता है उस भागीरथी को पन्नों पर साकार,
चुना है कथा ने भाव स्वरूप मुझे भी आज,
ताकि दे सकूं कथा के मूर्त स्वरूप को आवाज !