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Goga Khullar

Abstract Drama Inspirational

4.8  

Goga Khullar

Abstract Drama Inspirational

ना जाने कहां जा रहे हैैं हम .

ना जाने कहां जा रहे हैैं हम .

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ना जाने कहां जा रहे हैैं हम ...

कहीं पानी पानी को तरसते तालाब हैं।

और कहीं बाढ़ से बेघर लोग बेहिसाब हैं।

कहीं परवरिश को तरसते यतीमखाने हैं।


 और कहीं बच्चों के लिए बेशुमार अजा़नें हैं।

 कहीं तरक्की के नाम पर अनगिनत दरख्त गिराये जा रहे हैं।

 और कहीं वातावरण में सुधार के तरीके बताये जा रहे हैं।

 कहीं गुटखे और तम्बाकु के दिलखेज विज्ञापन आ रहे हैं।


 और कहीं लाईलाज बीमारियों के अस्पताल बनाये जा रहे है।

 लगता है दो दिशाओं में उलझ से गए हैं हम।

 ना जाने समृद्धि की परिभाषा क्या है ?

 शायद जान कर भी अंजान बन रहे हैं हम।


 और अपने अंधकारमय भविष्य पर बैठ कर मुसकुरा रहे हैं हम।

 ना जाने कहां जा रहे हैैं हम, ना जाने कहां जा रहे हैैं हम।


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