जीवन रूपी मदिरा
जीवन रूपी मदिरा
कल उनको मैंने बाज़ार में देखा था
इठलाती मुस्कुराती सी
अलग अलग रंग
अलग अलग रूप
कोई काली थी तो कोई सफेद
सब अपने रूप पर इठला रही थी
खुश हो रही थी
सबके लिए होड़ लगी थी
मारामारी हो रही थी
कोई देसी मांग रहा था
तो कोई विदेशी
सब उन्हें पाना चाहते थे
वो सब ऐसा माहौल देख कर मुस्कुरा रही थी
अपने यौवन पर इतरा रही थी
किसी ने काली खरीदी
तो कोई सफेद ले गया
किसी ने सबसे महंगी खरीदी
और किसी ने सबसे सस्ती ली
ये वो मय की बोतलें थी
जो उन्हें अपनाने वाले के साथ जाने को मचल रही थी
पर ये क्या नज़ारा था अगले ही दिन
जब मैंने देखा कि
यहां वहां बिखरी हुई पड़ी थी वो सब
कुछ टूटी
कुछ फूटी
कुछ यूं ही रेत में दबी हुई
कोई जान नही थी अब उनमें
बस यूं ही निर्जीव
ये सब तुरंत समझ आ गया था कि
सब जिसके लिए दीवाने हो रहे थे
वो बोतल नही थी
उनके अंदर भरी मय थी
जो किसी को खुश कर गई
कोई मदहोश हुआ
तो कोई बस यूं ही खामोश रहा
पर ये सबक सिखा गई थी
ये खाली मय की बोतलें
कि शरीर बस यूं ही पड़ा होगा निर्जीव
समय इसमें भरी जीवन रूपी मदिरा को
पी रहा है ।
अपने अंदर की मदिरा से
किसी को खुश करो
और किसी को मदहोश
बस जब तक मय बाकी है
तब तक आप बाकी हो ।।