बस उम्र यूं ही, गुजरती रही
बस उम्र यूं ही, गुजरती रही
कुछ उन्हें भी थोड़ी सी,
फुर्सत ना थी।
कुछ हम भी कहीं,
मशगूल थे।।
कुछ समां भी वो,
वाजिब ना था
कुछ लम्हे भी ना,
ही माकूल थे।
न वो कुछ कहे
ना हम कुछ कहे।
बस उम्र यूं ही
गुजरती रही।।
कभी खुशियों के आलम,
का शोर था
कहीं गमगीन मौसम,
हर ओर था।
जब गलियों में वो ,
यूं ही टकराए थे।
लफ्ज़ दोनों के मिलने ,
चले आए थे।
पर वह खामोश थे
हम भी खामोश थे।
बस उम्र यूं ही ,
गुजरती रही।।
कुछ उन्हें भी थोड़ी सी,
फुर्सत ना थी ।
कुछ हम भी कहीं,
मशगूल थे ।।