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Goga Khullar

Abstract Tragedy Crime

4.7  

Goga Khullar

Abstract Tragedy Crime

बस नफरतें बिकती है ।

बस नफरतें बिकती है ।

1 min
333


मैं गया एक बाजार में,

खबरों का पिटारा लिए, 

जोर जोर से आवाजें लगाई,

और निकाली कुछ खबरें

एक अच्छी

एक सच्ची

एक गर्व से कहने की

एक शांति से रहने की

किसी के विश्वास की

एक खुशनुमा सांस की

मंगल तक जाने की

और एक खूबसूरत ठिकाने की

कहीं नारी के सम्मान की

कहीं ज्ञान और विज्ञान की

कहीं मानवीयता की

किसी की आत्मीयता की


ना जाने कितनी ही खबरें निकाल कर,

सजा दी थी मैंने अपने सामने,

किसी ने बस यूं ही टटोला,


ना‌‌ कोई कुछ समझा,

ना कोई कुछ बोला

मैं उम्मीद करता रहा ,

पर कोई खरीददार ना मिला,


 मैंने सब अच्छी खबरों की,

एक पोटली बनाई,

और बगल में रख दी,

फिर मैंने एक और पिटारा निकाला, 

उसमें से कुछ खबरें पड़ी उछल रही थी, 


एक नफरत की, 

एक साजिश की, 

एक झूठ की,

एक फूट की,

कुछ नंगी तस्वीरों की,

कुछ बेघर मजदूरों की,

किसी के बलात्कार की,

तो किसी नरसंहार की,


मैं देखता ही रह गया और

खरीददारों की भीड़ लग गई


यूं ही सारी खबरें हाथों हाथ बिक गई,

बस फिर मैंने उठाया,

अच्छी खबरों का पिटारा,

और नफरतें बेचकर कमाई हुई दौलत,


चल पड़ा था जिंदगी ‌की जरुरतें पूरी करने,‌

 समझ गया था कि आज यहां,

बस नफरतें बिकती है

बस नफरतें बिकती है।


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