लाग लपेट ना होती हमसे
लाग लपेट ना होती हमसे
लाग लपेट ना होती हमसे,
साज सिंगार न करना देख।
सीधे सीधे राह पर चलते,
साफ मन और करम है नेक।
छल के हमको जाते कितने ,
हमसे छल का नही है मेल।
छुप कर बनते, बन कर छुपते ,
पीछे पीठ के घुटना टेक।
लाग लपेट ना होती हमसे,
साज सिंगार न करना देख।
बात घुमाकर खुश कर देते,
होता न हमसे ये झमेल।
साफ बोलकर दुखता तनिक ,
पर मन का वचन निखरता नेक।
लाग लपेट ना होती हमसे,
साज सिंगार न करना देख।
दुखता मन तो यूं रो देते,
हसता मन तो ठहाका फेक।
जैसे होते वैसे दिखते ,
ना कोई शंका न कोई मेख।
अच्छे सारे लगते जुगनू ,
और रातें भी लगती प्यारी बेल।
लाग लपेट ना होती हमसे,
साज सिंगार न करना देख।