यादें
यादें
बस कर अब चली भी जा
क्यों अंधेरे में चली आती है
सोने दे अब रात हो गई
तू क्यों रोज मुझे जगाती है।
अपने अंदर ले जाकर मुझको
तू मुझे सारी रात रुलाती है
वो क्षण अब तक आया नहीं है
जब तू बिन रोए सुलाती है।
चली जा तू भी उसकी तरह
मुड़कर जिसने देखा नहीं है
क्यों हमदर्द बनती वफा निभाती
जब उसे पाने की रेखा नहीं है।
ना जीने दिया है ना जीने देगी
चाहती है कि वफा निभाऊं मैं
समझ पाई ना कभी मुझे तू
बता कैसे उसे भुलाऊं मैं।
चली जा और वापस ना आना
फिर तू कभी अब मेरे पास
थोड़ी सी जिंदगी बची है जो
लेने देना अब चैन की सांस।