अलबम...
अलबम...
अक्सर हम तस्वीरे खींचा करते है..
उन्हें इकट्ठी करते है...
एक एक कर करीने से सजाते है..
और...उन्हे जब चाहे देखते है...
क्यों...??
खुद को वापस जीने के लिए...??
या...खुद से मिलने के लिए..??
या...आज को भुलाकर ..फिर ..
कल को पुकारने के लिए ??
मैंने भी खींची है कुछ तस्वीरें...
अनदेखी...सी..
बहुत सारी...और दिल के ताखों में ..
सजा रखी है...एक अलबम सी..
जानते हो....जब से तुमसे..मिली हूँ..
तब से लेकर इस पल तक की..
हर तस्वीर है उसमे सजी....
तुमसे पहली कहन..की,
तुमसे पहली ..झिझकती..मुलाकात की..
वो जब तुमने..सूरज से पहले मुझे जगाया..
वो जब ...हम दोनो ही तकते रहे चाँद को ..
अपनी अपनी छतों से..अपलक..और देखते थे..
उसमे एक दूजे की छवि
उस एक नज़र की तस्वीर ।।
उस पवन की..जो एक दिन चौराहे से..
तुम्हें छूकर..गुजरी थी..मुझे स्पर्श कर..
धीमे से..कानों मे तुम्हारा संदेश कहती
उस पुलकने की तस्वीर...।।
वो जब तुमने कहा..वो..
जो हमारे.. प्रेम का था पहला सौपान ..
उस धड़कते दिल की..
उन महकते पलों की तस्वीर ।।
जब भी मैं थी उदास...
खोई जाती थी..खुद पर विश्वास..
तुम्हारे अनदेखे स्पर्श की थपथपी..औ '
मेरे संचित..साहस की तस्वीर ।।
कुछ हुआ यूं भी...कई दफा..
पानी सी दीवारें भी बिछ गयी थी..
दरम्यां...
दिखता सभी कुछ..पर ज्यूं..
बह जाता..तरल सा..
उस बहते..पानी सी ..
धोती..भीतर के कलुष को..
उस लहर की तस्वीर ।।
कितनी ही तस्वीरें है..
इस यादों के अलबम मे..
इन दिनों फुरसत मे..
खोलती हूँ
मन के अलबम को
एक एक पन्ने को पलटती हूँ..
और..
फिर से पुकारती हूँ..
बीते हर पल को..
कभी मुस्कुराते.. कभी तुम मे खोए जाते हुए ।।