जिंदगी
जिंदगी
अजीब से मोड़ पे आकर रूक गई है जिंदगी
चलते-चलते मानो थक गई है जिंदगी।
खुले आसमां में जो उड़ाते रही सदा,
एक पंख विहीन पंछी बन गई है जिंदगी।
कोई जंजीर नहीं फिर भी बंध गई है ऐसे,
किसी कैद खाने में कैद जैसे हो गई जिंदगी।
तेरे प्रेम तरू का जो साया न मिलता
वक्त की तपिश में जल जाती ये जिंदगी।
शुक्रिया दोस्त तूने पनाह दी मुझे,
तेरे अहसानों तले दब गई है जिंदगी।
