शिकायत
शिकायत
सुर सजाते हो तुम,गीत गाते हो तुम
दिल जमाने का हंस के,बहलाते हो तुम।
रोती हर पल हूं मैं,याद करके तुम्हें।
क्यों मुझे ही इतना सताते हो तुम।
बहार बनके दुनिया में छा जाते हो तुम।
फूल बनके चमन को महकाते हो तुम।
फिर मेरी ही राहों में क्यों कांटे बिछाते हो तुम।
एक. "निशा "को मिटाने के वास्ते,
लाखों शम्मा दिलों में जलाते हो तुम
भटके राही को रास्ता दिखाते हो तुम।
एक दिल ही मेरा अंधेरों में डूबा हुआ,
क्यों ना इसको उजाला दे पाते हो तुम।
मिटा देते हो हस के आरजू को मेरी।
बह जाते हैं अरमा आंखों से सभी।
जग से तो यारी तुम्हारी सदा,
दुश्मनी क्यों मुझसे ही निभाते हो तुम।

