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"पागल फ़क़ीरा" 🌹

Drama

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"पागल फ़क़ीरा" 🌹

Drama

मैं बेटी हूँ

मैं बेटी हूँ

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मैं बेटी हूँ, जीने के लिये मुझे भी मेरा अधिकार चाहिये,

गर्व से जीने बेटी आज वीरांगना सी ललकार चाहिये।


आँगन में अपने ही क्यों महफ़ूज़ नहीं होती है बेटियाँ,

ख़ुद की हिफ़ाज़त ख़ुद करने हाथ में तलवार चाहिये।


पाबंदी-ए-परवाज़ के दौर से अपनी आज़ादी के लिए,

अपने ख़ूबसूरत शब्दों में भी कटाक्ष सी कटार चाहिये।


यहाँ हवसख़ोर की नज़र से अपना मान सम्मान बचाने,

तेरी ममता भरी आँखों में भी शोलों की बौछार चाहिये।


पुरुष प्रधान समाज में स्वभिमान से जीने के लिये भी,

बेटी अपने सीने में गुस्सा और हौसले की धार चाहिये।


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