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Prashant Kaul

Drama

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Prashant Kaul

Drama

चेहरे पर नकाब !!

चेहरे पर नकाब !!

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हर चेहरे पर नकाब है और दिल में है डर

ये अपनी दुनिया को हमने कहां ला छोड़ा है


इतना क्यों बेबस हो गया है इंसान

कि अब अपने भी, साथ नहीं रह सकते


कहने को तो हमने धरती और आसमान जीत लिया है

फिर क्यों चार दीवारों में सांसें कैद सी लगती हैं


हुकूमत का नशा यूँ है सबके सर पे सवार

और जाने कितनों की जान लेकर उतरेगा


मौसम में इसका कोई दोष नहीं 

दोष तो है बस सियासत का


काश समझ पाते ये सत्ताधारी

कि हर देह को दो गज जमीन ही

चाहिए मरने के बाद।


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