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Prashant Kaul

Abstract

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Prashant Kaul

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मानो जैसे कल ही की तो बात थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी

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मानो जैसे कल ही की तो बात थी

गले लगना प्यार की पहचान थी

मिल बांट कर खाने में कमाल की मिठास थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


दफ्तरों की चहल-पहल की अलग ही बात थी

निकल जाता दिन पलक झपकते

और शाम यारों के साथ कटती मज़ेदार थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


बेखौफ दिलों की धड़कनें थी

और सांसो में ना खराश थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


बाजारों में भीड़ बेशुमार थी

सड़कों पर गाड़ियों की लंबी कतार थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


रोज़ नए चेहरों से बातें होती थी

और कुछ याद रह जाने वाली मुलाकातें होती थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


यारों का साथ था अपनों की सौगात थी

हाथों में हाथ था और लबों पे मुस्कान थी


मानो जैसे कल ही की तो बात थी

मानो जैसे कल ही की तो बात थी।


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