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Satyendra Gupta

Abstract

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Satyendra Gupta

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जिंदगी से जिंदगी का जंग लिख रहा हूं

जिंदगी से जिंदगी का जंग लिख रहा हूं

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जिंदगी से जिंदगी के जंग लिख रहा हूं

कभी खुशियां तो कभी गम लिख रहा हूं

चिंता मत कर तेरा भाई है न साथ तेरे

जरूरत पड़ने पे साथ नही देना लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी का जंग लिख रहा हूं

आगे बढ़ते देख लोगो का तंज लिख रहा हूं

खुशियां बर्दास्त नही लोगों को मेरा

मेरी जिंदगी हो बदरंग कैसे, वो बदरंग लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

मेरी चहकती बगिया से चिढ़ है उनको

मेरे जैसा आगे बढ़ना नही है उनको

आज मैं उनकी जलन की बू लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

बहुत उड़ान मार रहा ये परिंदा

काट दो पंख इसका ना रह पाएगा जिंदा

आज पंख काटने वाले का हुनर लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

लोग दुखी अपनी परेशानियों से नहीं

दुसरो की खुशियों से है ज्यादा

बर्बाद कर दे दूसरों को, बर्बादी का आलम लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

वर्तमान से भविष्य की अंग लिख रहा हूं

सोचता हूं अच्छा रहुं मैं, सब लोग रहे अच्छा

ऐसा सोचे लोग ईश्वर से दुआ लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

आज हु जिंदा कल का भरोसा नहीं

कल के लिए लोग करते है कितना कुकर्म

उन कुकर्मो का लेखा जोखा लिख रहा हूं।


जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हूं

अपनों से अपनापन छीनता लिख रहा हूं

भलाई को बुराई में बदलता लिख रहा हूं

मुसीबत में अपनो को हसता हुआ लिख रहा हूं

जिंदगी से जिंदगी की जंग लिख रहा हु।


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