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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मेहंदी

मेहंदी

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आज के इस युग में भी मेहंदी का 

प्रचलन कोई नया तो नहीं है,

बल्कि इसका प्रयोग बहुत पहले से हो रहा है।

मेहंदी का इतिहास बताता है

कि भारत में मेहंदी का आगमन 

बारहवीं शताब्दी में मुग़ल सल्तनत के साथ हुआ,

मुग़ल रानियों को अपने हाथों में

मेहंदी सजाना बहुत पसंद था,

इसके औषधीय गुणों और 

इसकी ठंडी तासीर से उनका परिचय था,

जिसकी देखा-देखी बहुत से हिंदू घरों में 

हाथों में मेहंदी सजाना शुरू हो गया।

मेहंदी को शुभ, सौभाग्य और दाम्पत्य जोड़ों में

प्रेम प्यार का प्रतीक, और भाग्यशाली माना जाता है,

भारतीय वैवाहिक परंपरा में मेहंदी लगाने की रस्म का 

अपना धार्मिक और सामाजिक महत्व है।

दुल्हन के अच्छे स्वास्थ्य‌ और समृद्धि के लिए

शादी की रात से पहले की रात

मेहंदी समारोह का आयोजन होता है

शादी के लिए इसे उसकी यात्रा का 

शुभारंभ माना जाता है।

मेहंदी को शुभ भी माना जाता है

क्योंकि ये दुल्हन की खूबसूरती में 

चार चांद लगाने जैसा होता है।

दुल्हन के हाथ पर मेहंदी का गहरा रंग 

नवदम्पति के बीच गहरे प्यार को दर्शाता है,

मेहंदी का रंग जितना देर तक बरकरार रहता है, नये जोड़ों के लिए यह उतना ही शुभ माना जाता है,

यही नहीं मेहंदी का रंग दुल्हन और उसकी सास के 

आपसी प्यार और समझ का पर्याय भी माना जाता है।

आजकल अपने देश में मेहंदी का उपयोग

बालों को रंगने में भी खूब होता है,

दक्षिण एशिया में मेहंदी का उपयोग

शरीर को सजाने के साधन के रूप में 

हाथों, पैरों, बाजुओं आदि पर लगाकर होता है। 

त्वचा संबंधी कुछ रोगों के लिए औषधि 

मेहंदी को हिना भी कहा जाता है। 



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