तुमसे विवाह करने की
तुमसे विवाह करने की
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तुमसे विवाह करने की,
कोई रजा ना थी मेरी,
बस फिर भी हो गया ये,
कोई वजह होगी गहरी।
जीवन क्या होता है ...
ये सीखा विवाह के बाद,
कभी झगड़ा करके तो,
कभी प्यार से काटें रात।
कभी लगे कि छा गई,
चारों ओर घटा अंधेरी,
तुमसे विवाह करने की,
कोई रजा ना थी मेरी।
ये व्यवस्था विवाह सच में,
इतना आसान नहीं होता,
क्योंकि दोनो का ही इसमे,
कोई सम्मान नहीं होता।
कुछ सालों के बाद ही,
सब लगाते मन मौजी डेरे,
और पुरुषा
र्थ दिखाकर,
स्त्री से अक्सर मुँह फेरे।
ऐसा लगता तब ये जवानी,
बर्बाद हो गई मेरी ....
तुमसे विवाह करने की,
कोई रजा ना थी मेरी।
माता - पिता की आज्ञा का,
मैने हमेशा रखा मान,
तुमसे विवाह के बाद भी,
मैं बनी रही नादान।
तुमने जब भी चाहा,
तब जी भर कर मुझको भोगा,
और जो मैने मना किया तो,
कितनी गालियों का पहनाया चोगा।
सारा दिन खटने के बाद भी,
तुम मुझे कह ना सके कमेरी,
तुमसे विवाह करने की,
कोई रजा ना थी मेरी।