ख़ुद की पहचान
ख़ुद की पहचान
जब तक थी साथ तुम्हारे
कभी ना लांघा सीमा को
लाख अरमानो का खून कर
आह पर मेरे तुम फूले..!
तोड़ जंजीरें बंदिशों की
पहचान बनाने क्या निकली
नसिहतों की झड़ी लगा दी..
!
बस अब बहुत हुआ
यूँ अरमानों का कत्ल हमारे
मुझे पाना अपनी मंज़िल
चलना अब सफलता की डगर
तोड़ बंदिशों के टीलों को
कुछ कतर उत्कर्ष के पाना
कुछ अलग तुमसे कर गुजरना
मुझे ख़ुद की पहचान बनाना..!