ख्याब
ख्याब
उसकी आंखें बहुत सुन्दर थीं
नीली-नीली, बडी़-बडी़
उसने खुली आंखों से देखे ख्याब
बंद आंखो से देखे गये ख्याब
गुम हो जाते हैं सूरज की रोशनी में
ये जानती थी वो
वो तो सूरज से आंखें मिलाती थी
अपने गांव की छत से
वो देखती थी खुला आसमां
आसमां में उड़ते पक्षी और जहाज
उसके पर होते तो उड़ जाती
और नाप आती सारा का सारा
वह गौर से देखती जहाज
उसने किसी को कहते हुये सुना
आजकल लड़कियां भी उडा़ती हैं जहाज
उसने सजा लिया ये ख्याब
वह जागी दिन और रात
खूब पढी़, खूब बढी़
लड़कर एक लम्बी लड़ाईं
गांव की पहली पायलट बनकर आई
उसने महसूस किया
उसकी पीठ पर उग आये हैं पंख
वह उड़ गई दूर आसामां में
वह आसमां से देख रही थी
अपना गांव और अपनी छत....।