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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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पिता

पिता

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पिता आज ही नहीं कल भी है,

पिता वर्तमान और भविष्य भी है,

पिता आचार, विचार, व्यवहार

संस्कार सुविचार संग आधार है।


पिता खुशी है दर्द है पीड़ा है,

पिता बिना स्वरों की वीणा है,

पिता खाई, पहाड़, मैदान, रेगिस्तान है,

पिता खेत खलिहान दुकान मकान है

पिता सबसे खूबसूरत सुरक्षित आसमान है।


पिता थाली की रोटी और

हमारी भूख प्यास जरुरत है,

पिता, राशन, सब्जी, दवाई हर सूरत है।

पिता पढ़ाई, लिखाई,कलम,दवात, कापी और किताब है

पिता हमारी खुशियों की ख़ुदाई भी है,

हमारे जीवन का सबसे बड़ा अनुहार, सम्मान है, 

पिता हमारे सुख का पारावार है।


पिता न्याय, अन्याय, सूख-दुःख 

खुशी, पीड़ा और आकुलता है।

हममें सब कुछ देखने की व्याकुलता ही पिता है।

पिता मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारा और श्मशान है,

पिता रामायण गीता, बाइबिल और कुरान है।


पिता सब्जी काटने की छूरी ही नहीं

गला रेतने वाली कटार है,

पिता दुनिया में हमारे सुधार का सबसे अच्छा औजार है।

पिता धरती का भगवान ही नहीं चलता फिरता संस्थान है,

तो पिता ही संसार का सबसे खुरदुरा इंसानी भगवान है।


पिता खिला हुआ फूल ही नहीं

काँटेदार विशाल वटवृक्ष भी है।

आज के परिवेश में हम पिता को कुछ ऐसे देखते हैं,

कि पिता सबकुछ होकर भी कुछ भी नहीं है।


वर्तमान में पिता पिता न होकर

सिर्फ हमारे स्वार्थ का सामान है,

जिसमें दर्द, संवेदना, भावना, बुद्धि, विवेक नहीं है।

उसकी अपनी कोई ख्वाहिश या अधिकार नहीं है।


आज पिता का सिर्फ कर्तव्य भर बचा है

उसका अपने लिए कोई खर्चा भी नहीं है।

क्योंकि पिता को आज हम पिता कहाँ समझते हैं?

पिता से हमारा सिर्फ स्वार्थ का नाता है

तभी तो हमें पिता में 

पिता बिल्कुल नहीं नजर आता है,


आज हमें तो पिता में बस 

चलता फिरता सिर्फ कल कारखाना नजर आता है।

अपवादों की आड़ में गुमराह न होइए हूजूर

पिता से सिर्फ स्वार्थ का रिश्ता रखना

हमें बहुत अच्छे से आता है,

पिता भूखा, प्यासा, बीमार है

उसकी कुछ स्वाभाविक आवश्यकताएं


इलाज अथवा हमारे समय, साथ की जरूरत है

ये हमें समझ ही कहाँ और कब आता है?

पिता की लाठी बनने का हुनर आज

भला कितनों को आता है जनाब।

कौन समझाएगा आज की पीढ़ी को

पिता से हमारा कैसा और कौन सा नाता है.


सच सच बताइए आज की समझदार,पढ़ी लिखी, 

सबसे बुद्धिमान पीढ़ी को कितना समझ में आता है?

पिता होने का मतलब भला आज

पिता के रहते हुए कितनों को समझ में आता है,

आखिर क्यों पिता को समझने के लिए

उनके दुनिया से जाने के इंतजार में 

हमारा बुद्धि विवेक क्यों मर जाता है ? 


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