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Dr.Pratik Prabhakar

Drama

3  

Dr.Pratik Prabhakar

Drama

नई सोच

नई सोच

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बच्चों की सोच मतवाली

सोच नई इच्छाएं निराली 


मेघ बन कभी खोजे धरा

कोई इधर कोई उधर गिरा 

हैं चंचल नटखट गोलू मोलू

हर्षित हो जब बैठे वो डाली

बच्चों की सोच मतवाली।


पहले खेलते बाहर घर से 

अब हैपानी ऊपर सर के 

मोबाइल ,टीवी उन्हें है प्रिय 

रचनात्मकता है उनमें खाली

बच्चों की सोच मतवाली।


अब दिन भर घर में रहते हैं 

हम सा शाम में ना खेलते हैं 

कैसे होगा उनका सर्व विकास 

हम सब हुआ करते हैं सवाली

बच्चों की सोच मत वाली।


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