बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
बच्चों की असली पहचान
अन्दर बाहर एक समान
जैसा देखी वही बोल दी
रखते नहीं मन में अभिमान।
जाति, धर्म वे नहीं जानते
ऊँच-नीच नहीं फर्क मानते
वे मिलजुलकर खेल खेलते
ना ग़रीब ना धनी जानते।
जैसे कह दो वैसे करते
नहिं दुराव कोई मन में रखते
अपनी सच्ची मुस्काहट से,
सब को आकर्षित कर लेते।
झूठ बोलना नहीं जानते
जो कह दो वे वही बोलते
नहीं जानते इधर-उधर की,
लाभ-हानि वे नहीं तौलते।
अक्ल के थोड़े होते कच्चे
पर होते वे मन के सच्चे
थोड़ा रोते फिर हँस देते
सबके मन को भाते बच्चे।
