जो वादे...
जो वादे...
जो वादे किए वो निभाते कहाँ है?
नज़र से नज़र अब मिलाते कहाँ हैं?
ये अपनी छुपाते दिखाते हैं उनकी,
सिवा इनको कुछ और आते कहाँ है?
ना जाने छुपाये हैं क्या राज मन में,
कभी खुल के बातें बताते कहाँ है?
जो सच की डगर पे हैं चलते अकेले,
भला शोर सबसे मचाते कहाँ हैं?
बहुत ढोंग रचते हैं वे अपनेपन का,
मगर वक्त पर काम आते कहाँ हैं?
जो सच के लिए जाने जाते थे जग में,
वो अब सच से पर्दा हटाते कहाँ हैं?
कभी देख के जो चहकते थे हर पल,
वो 'आज़ाद' अब मुस्कुराते कहाँ हैं?
