विनती
विनती
मैं हूं एक छोटा सा बालक नादान
खाने में भाते मुझको बस पकवान
पढ़ने में नहीं लगता मेरा ज़्यादा ध्यान
खेलकूद और कार्टून हैं मेरी जान
मेरी एक विनती सुन लो तुम भगवान
बिन पढ़े ही बना दो मुझको ज्ञानवान
सिखला दो मुझको भी "कैसे हों अंतर्ध्यान"
ताकि करके शैतानी हो जाऊं मैं भी अंतर्ध्यान
ना पड़ेगी डांट,ना उमेठ पायेगा फिर कोई मेरे कान
होगी निराली मेरी शान, करेंगे सब मेरा सम्मान
कर दोगे इच्छा पूरी तो,
गाऊंगा ताउम्र प्रभु आपका गुणगान।