पिता जैसा कोई नहीं
पिता जैसा कोई नहीं
क्यों मां का ही होता है हरदम गुणगान
पिता भी तो छिड़कते हैं बच्चे पर जान
बेशक गर्भ में नौ महीने रखना, मां के लिये है कठिन काम
पर गर्भ में सुरक्षित रखने का करते हैं पिता पूरा इंतज़ाम
बच्चे के साथ साथ मां का भी रखते हैं पूरा ध्यान
दोनों में से किसी को भी हो जाये कुछ, सांसत में आ जाती है उनकी जान
कभी करते ना थे जो अपना एक भी काम
देते हैं वो अब बहुत से काम को अंजाम
बच्चे को पालने में भी बंटाते हैं वो हाथ
रात को भी जागते हैं वो बच्चे के साथ
मां रखती है गर दिन भर बच्चे का ध्यान
तो पिता उसके भविष्य के लिये बना लेते हैं प्लान
फर्क इतना है वो मां जैसा लाड़ प्यार जताते नहीं हैं
डांटकर बच्चे को मनाते नहीं हैं
बेतुकी फरमाइशों पर वो नहीं देते ध्यान
हां, जरूरतें पूरी करने में वो लगा देते हैं जान
मां की गोद जैसी नहीं है दुनिया, इस बात का वो ही कराते ज्ञान
बच्चे को तराशने में हर छोटी-बड़ी बात पर देते हैं ध्यान
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलने के काबिल वो ही बनाते
हिम्मत, स्वाभिमान, आत्मविश्वास, निडरता जैसे गुण बच्चे में उपजाते
पिता ही हैं जो अपने से ज़्यादा काबिल बनाकर खुश होते हैं
बच्चे की तकलीफ़ में वो छुप छुपकर रोते हैं
पिता के होते, बच्चों से चिंता रहती है कोसों दूर
साथ छूटते ही उनका, मां और बच्चे दिखते असहाय और मजबूर
पिता ही वो हस्ती है जिनके होने से जीवन में मस्ती है
उनके होने से ही मां के चेहरे पर नूर और खुशियां बरसती हैं।