उल्लास का पर्व
उल्लास का पर्व
त्यौहार होली का, भरता है मन में सबके उल्लास
छोटा हो या बड़ा ,आता है ये सबको ही रास
करके भस्म अवगुणों को करें हम होलिका दहन का एहसास
रंगकर प्यार के रंग में सबको, मनायें हम फाग को खास
घुली होती है इन दिनों फिज़ा में व्यंजनों की सौंधी वास
गुझिया, चंद्रकला इतराती हैं क्योंकि अटैंशन मिलती है इनको ही खास
मिल जाये ठंडाई और पकौड़े भांग के,रहती है सबको ही आस
ललचाता है रंग कांजी का और भाती है इसकी खटास
खा-पीकर इनको करते हैं लोग फिर खूब हास -परिहास
रखें ख्याल उनका भी हम,बैठे हैं जो घर में अपने उदास
भर दें जीवन में उनके उल्लास और गुंझिया सी मिठास
लगायें एकदूसरे के खूब गुलाल,आज नहीं कोई आम, ना खास।