लंचबॉक्स की पीड़ा
लंचबॉक्स की पीड़ा
घर में बर्तन कर रहे थे एक दूसरे से बात
कह रहे थे समझ नहीं आई अब तक एक बात
पता नहीं आजकल क्यों हमें बार बार इस्तेमाल किया जा रहा है
फिर मसाज अच्छी देकर हमें चमकाया भी जा रहा है
सुनकर ये बोला लंच बॉक्स, नहीं रखता मैं तुम्हारी बातों से इत्तेफाक
मैं और मेरे बच्चे तो कोने में पड़े हुए, रहे धूल फांक
मुझसे तो जैसे सबने नाता ही तोड़ दिया है
मेरे मासूम बच्चों से भी मुंह मोड़ लिया है
पहले तो कहां सबसे पहले मुझे ही नहला धुलाकर तैयार किया जाता था
फिर प्यार से मालिक के हाथों में थमाया जाता था
मेरे बच्चे भी रोज़ घूमने जाया करते थे
नित नए व्यंजन पाकर इतराया करते थे
आजकल तो बस कढ़ाई के मज़े आ रहे हैं
रोज इसी में पकवान बनाए जा रहे हैं
थाली ,कटोरी, चम्मच, गिलास तो रोज़ ही काम आ रहे हैं
एक मैं और मेरा परिवार ही बेरोज़गार हुए जा रहे हैं
सुनकर बात लंचबॉक्स की, हंसकर बोली परात
दु:खी ना हो तू, बस थोड़े से दिनों की है और बात
पायेगा खोया रूतबा तू फिर से ,हो जायेगा जब कोरोना परास्त
हुआ आश्वस्त, फिर खिलखिलाया सुन परात की बात।
