अनकहा रिश्ता
अनकहा रिश्ता
ना कोई बन्धन ना कोई रिश्ता
फिर भी बना जो सफ़र का हिस्सा
वो अनकहा किस्सा।
इंसानियत नाम था जिसका
उन रिश्तों से था वो
अनजाना रिश्ता बहुत बड़ा।
जिन रिश्तों में था रिश्तों का टैग लगा
ब्रैंडेड रिश्तों के नाम पर धोखा बड़ा
नीचा दिखाने को ढूंढते मौका।
उसके विपरीत कुछ घंटों के सफ़र
का मीठा रिश्ता
मानो जिन्दगी में मिल गया हो कोई फरिश्ता
फिर भी दर्द बांट लिया एक दूसरे का
जब की नामुमकिन था।
फिर कभी सफ़र में मिलने का मौका
क्योंकि वो भी सफ़र का था हिस्सा
और मैं भी सफ़र का हिस्सा।
कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ कह
गया वो अजनबी रिश्ता
इंसानियत नाम था जिसका।