किसान का दर्द
किसान का दर्द
एक किसान का हृदय तब फटता है
जब फसलों पर ओला कोई गिरता है
पूरे मन से किसान परिश्रम करता है
फिर क्यों ईश्वर, तू ओलावृष्टि करता है
लगता, तू भी हम किसानों से जलता है
शायद इसलिए बेमौसम वर्षा करता है
धरती का भगवान, यूंही आंखे मलता है
जब ईश्वर उसको बेमतलब ही छलता है
ज़माना तो पहले ही हमें मूर्ख समझता है
खुदा तू ओर क्यों किसानों पर बिगड़ता है
एक किसान ही इस देश का पेट भरता है
हमारी भूख मिटाने, वो खुद भूखा मरता है
जहां पर किसान खेती करना छोड़ देता है
वहां पर वो देश भूखमरी की ओर चलता है
जितने ज्यादा परमात्मा तू करेगा सितम
उतने ही ज्यादा मजबूत होंगे किसान हम
समस्यों का एकदिन हल जरूर निकलता है
शूलों के बीच ही गुलाब का फूल खिलता है
फिर करेंगे खेती, हमारे भीतर कर्म नदी बहती
एक किसान कभी भाग्य आगे नही झुकता है
आखिर कब तक रब तेरा दिल नही पिघलता है
किसान तो आखिरी, सांस तक भाग्य से लड़ता है
किसान की व्यथा वैसे भी कौन यहां पर सुनता है
तू तो सुन दर्द मेरा, किसान तो तुझ पर ही मरता है।