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धरती की पीड़ा को सुनकर

धरती की पीड़ा को सुनकर

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धरती की पीड़ा को सुनकर

अम्बर का दिल रीत गया

बाझों की चोचों से घायल

कोयल का संगीत गया

मौन बागबाँ खड़ा प्रतीक्षित

प्रलय गान सुन लेने को

श्रेष्ट समझता है वह केवल

बस निंदा कर देने को

हे ईश्वर करलो धरती

पर आने की तैयारी

दफ्न हो गई चीखों में

उम्मीदों की चिंगारी ।

पलकों से अधरों से

जिस बेटी को मैंने पाला

उस बेटी को कल

अखबारों ने नंगा कर डाला

गिद्धों ने नोचा होगा

मृत शव जैसे जंगल में

चीख रहे है आंसू बनकर

साक्ष्य सिंधु के जल में

हृदयहीन इस राजनीति

से न्याय याचना हारी

दफ्न हो गई चीखों

में उम्मीदों की चिंगारी ।


क्यों ना फटी धरती की

छाती जब वो तड़प रही थी

क्यों ना गिरा आकाश

वासना तन को मसल रही थी

धवल लहर गंगा की

क्यों ना रक्त वर्ण बन जातीं

और शिलाएं पर्वत की

आंसू में फिर सन जातीं

मानवता की हत्या पर है

मौन आज विधि सारी

दफ्न हो गई चीखों

में उम्मीदों की चिंगारी ।


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