गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

Drama Others

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गुलशन खम्हारी प्रद्युम्न

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सजल...

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हॅंसाते रहो चहचहाते रहो ।

दिलों में वहीं घर बनाते रहो ।

         कि नाता दिलों का सुझाते रहो ।

         कि चुपचाप यूॅं गुनगुनाते रहो ।

समा प्यार की ग़मज़दा हो रही,

हॅंसी की ही दरिया बहाते रहो ।

         कहो कौन किसका किया कुछ यहॉं,

         दिले प्यार सब पर लुटाते रहो ।

ख़ुदा को ही दोषी बनाओ नहीं,

ख़ुदी को सदा आज़माते रहो ।

         मिटाया हुआ भाग्य फलता नहीं,

         कि रिश्ता दुखों का निभाते रहो ।

ॲंधेरा मिटेगा बिना कुछ किये,

तुम्हीं हो सितारे बताते रहो ।

         मुकद्दर लिखेगा तुम्हारी ख़ुशी,

         चलो पॉंव आगे बढ़ाते रहो ।

खुला आसमॉं है तुम्हारे लिए,

कि जुगनू बनो जगमगाते रहो ।

         ज़माना नया है तराना नया,

         खुशी के तुम्हीं गीत गाते रहो ।

कि अचरज भरा घोल बनता यहीं,

कि ऑंसू खुशी में मिलाते रहो ।

        किये तुम सदा गैर दुखड़े परे,

        सुकूॅं का यही दौर लाते रहो ।

कि 'गुलशन' खिला ख़ून सींचा जहॉं,

कि मरते हुए मुस्कुराते रहो ।



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