सजल...
सजल...
हॅंसाते रहो चहचहाते रहो ।
दिलों में वहीं घर बनाते रहो ।
कि नाता दिलों का सुझाते रहो ।
कि चुपचाप यूॅं गुनगुनाते रहो ।
समा प्यार की ग़मज़दा हो रही,
हॅंसी की ही दरिया बहाते रहो ।
कहो कौन किसका किया कुछ यहॉं,
दिले प्यार सब पर लुटाते रहो ।
ख़ुदा को ही दोषी बनाओ नहीं,
ख़ुदी को सदा आज़माते रहो ।
मिटाया हुआ भाग्य फलता नहीं,
कि रिश्ता दुखों का निभाते रहो ।
ॲंधेरा मिटेगा बिना कुछ किये,
तुम्हीं हो सितारे बताते रहो ।
मुकद्दर लिखेगा तुम्हारी ख़ुशी,
चलो पॉंव आगे बढ़ाते रहो ।
खुला आसमॉं है तुम्हारे लिए,
कि जुगनू बनो जगमगाते रहो ।
ज़माना नया है तराना नया,
खुशी के तुम्हीं गीत गाते रहो ।
कि अचरज भरा घोल बनता यहीं,
कि ऑंसू खुशी में मिलाते रहो ।
किये तुम सदा गैर दुखड़े परे,
सुकूॅं का यही दौर लाते रहो ।
कि 'गुलशन' खिला ख़ून सींचा जहॉं,
कि मरते हुए मुस्कुराते रहो ।