आज दूसरा जनम..
आज दूसरा जनम..
अंत समय नजदीक था तांता बड़ा लगा था लोगों का
आँखें नम थी कुछ कुछ सदमे में थे मन
कुछ ने सांस ली छुटकारे की के छूटे जिम्मेदारियों से हम
बस मैं तो लाश बनी थी अंदर से मैं खुश बड़ी थी के आखिरी ओ समय अंत का आया -----
छूटूंगी मैं आखिर इस बोझ से कितनों के अपेक्षाओं के चक्र से
दिल अब वैसे ही दर्द में बड़ा था जख्मी अपनों के शब्दों से ही तो हुआ था
प्यार बस चाहा था अपने हर त्याग के पीछे
चाहत ज्यादा नहीं थी मेरी बस इतनी की कोई मेरी भी नम आँखों की वजह पूछ ले मुझ से
हाँ जब मुझसे जरूरत नहीं कोई रहीं , ना रही मेरी मौजूदगी कि फिक्र-- तो दिल ने कहाँ अब तू यहाँ से निकल
चल बसेरा कोई और ढूँढ ले नया , कोई आशियाना भी नया ले जनम दुसरा जिंदगी दूसरी -------
जहाँ तेरे होने से मिठाई बटेंगी !!!!
