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प्रवीन शर्मा

Drama Tragedy Classics

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प्रवीन शर्मा

Drama Tragedy Classics

प्रेम हेतु नम्य

प्रेम हेतु नम्य

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दृश्य: कामदेव भस्मीभूत है, रति भस्म के पास बैठी शिव को संबोधित कर रही है।


हे विश्वनाथ, क्या मेरे नाथ अक्षम्य थे

प्रेम और बस प्रेम हेतु ही तो नम्य थे

बिन आज्ञा, अपने प्रभु से कुछ चाहना पाप है क्या

क्या मेरे कामदेव के कर्म इतने जघन्य थे


माना सर्वेश्वर आप हम सब के स्वामी हो

मेरे देव ने चाहा बस आप उमा के स्वामी हो

हे देवों के देव, क्या संतुलन प्रकृति में आवश्यक नहीं

क्या सही नहीं अब, शिव शक्ति संगामी हो


विरक्त अगर पिता पुत्रों से हो जाये

कैसा दुर्भाग्य होगा उन पुत्रों का हाय

आप तो सदा से परमपिता है इस नश्वर जगत के

फिर आप कैसे चाहेंगे, बच्चे बिन माँ के रह जाये


मैं रति, अधूरी हूँ उन बिन

आपकी इच्छा से होता क्या रात क्या दिन

दासी की विनती है, या उन्हें लौटाए मुझे

या मुझे भी भस्मीभूत करें इसी क्षिण


अंतिम शब्द है मेरे, प्रेम की पूंजी छीन रहे है सब से

सती बिन जी रहे है, क्रोध में जल रहे है कब से

हे भोलेनाथ, जिस विरह में आप है मैं भी तो हूँ अब

क्या मेरा दर्द किंचित भी पृथक आपके दुख से


मेरे देव चले गए, कैसे अतृप्त को अब सिक्त करें

हे त्रिनेत्र, मुझे जीव बंधन से मुक्त करें

हम धन्य हुए ये जो भी हुआ, मेरा जन्म सफल हुआ

प्रेम हेतु जी लिये, दीनानाथ मुझे प्रेम प्रवाह में विमुक्त करें



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