अनसुना
अनसुना
न कवि मैं न लेखक हूँ
बस साधारण प्राणी मुझको मान
छंद विज्ञान मैं क्या जानूं, मैं तो भावुक हूँ इंसान।।
व्यक्त करता अपने भाव को
लेकर कहानी का कोई सार
सबको देना चाहता हरदम, एक अछूता-अनसुना ज्ञान।।
कोशिश हैं कुछ बेहतर की
यही चला मेरा अभियान
सफल रहा था ठीक नहीं, नहीं तो स्वीकार न करना आधा-अधूरा ज्ञान।।
मूर्ख हम सा नहीं मिलेगा
जानें महाअज्ञानी-मुर्ख एक महान
शब्द-अर्थ का जिसे ज्ञान नहीं, एक बेवकूफ की हमारी है पहचान।।
कुछ दुखड़े गाकर मन बहलाते
उसी हँसी न उड़ाना अपना कहना साफ
बड़ी उम्मीद से आयें है वो, उनको सहारा देना अपना पहला काम||
तन-मन सर्वस्व खोना पड़ता
जब भौतिक सुख की आती बात
तब जीवन-मरण भी मात खाता, जब परिवार पर आती बात||
सुख के बदले सुख मिलता
ये सुख पाने का एक सुंदर राज
द्रुत-लोभी-लालची सब पा जाते, परेशान रहते साधूजन आज||
मान-सम्मान खोये रिश्ते मिलते
जब धन-लक्ष्मी हो अपने पास
इंसान के दिन जब फिरने लगते, तब पहचान ही भूलते अपने खास||
एक घोर निराशा मन में भरी है
उसका रखना हमेशा ध्यान
हर स्तर पर टूटी उम्मीदें, लिखते है लेखन को सहारा जान।।
लेखन अपनी जीवन धारा
करना गलती अपनी माफ
क्षमा प्रार्थी रहें हमेशा, अगर कभी दिल-दुखाया आप।।