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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Tragedy Inspirational

"प्रतिभा"

"प्रतिभा"

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"प्रतिभा"
प्रतिभा जाति की,भला कब मोहताज होती है।
प्रतिभा तो मेहनती लोगो की आवाज होती है।।

प्रतिभा तो मेहनत से बनी हुई,वो बाज होती है।
उनके आगे आसमां की भी क्या बिसात होती है?

जिनके भीतर प्रतिभा,जैसी कर्म आग होती है।
उनकी हर क्षेत्र,हर जगह पर नित मांग होती है।।

उनकी एकदिन सफलता से मुलाकात होती है।
लगन,प्रतिभा,ओर मेहनत,जिनके साथ होती है।।

उन पत्थरों में साखी एकदिन जरूर जान होती है।
जब प्रतिभावान,की हथौड़ी उसके भाल होती है।।

सच्ची लगन,प्रतिभा आगे झुकी,कायनात होती है।
प्रतिभा कब भला,संसाधनो की मोहताज होती है।।

वो जगह नर्क है,जहां ऊंच-नीच की बात होती है।
वो जगह स्वर्ग है,जहां समानता की बात होती है।।

प्रतिभा हर व्यक्ति में रब की दी जन्मजात होती है।
प्रतिभा की कभी भी नही कोई जांतपांत होती है।।

जिनमें ऊंचनीच ओर भेदभाव की सोच होती है।
उन्हें पूंछो,क्या कभी आग से बुझी आग होती है।।

हम इंसानों से अच्छी जानवरों की जात होती है।
जो एकसाथ रहते है,उनमें न कोई नाक होती है।।

प्रतिभा तो सदा निर्विकार और निष्पाप होती है।
प्रतिभा गंगा जैसी निर्मल,पावन जलधार होती है।।

प्रतिभा में फ़लक झुका देनेवाली बात होती है
प्रतिभा तो फ़लक छूने वाली आजाद बाज होती है।।

आओ इंसानियत की मरी हुई प्रतिभा को जगाए।
फिर देखते,अमन,खुशी फूल कैसे खिल न पाए?

इंसानियत की यह प्रतिभा जिसके पास होती है।
उसकी तो जगह,खुदा के हृदय के पास होती है।।

दिल से विजय
विजय कुमार पाराशर-"साखी"


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