किससे करे, मन की बात
किससे करे, मन की बात
किससे करे, अपने इस मन की बात
आजकल आईने के टूट हुए है,दांत
देखते है, जिस दर्पण को दिन-रात
उसमें गुम है, अपनी सूरत ए हयात
बदल से गये है,आजकल हालात
जहां पर होती थी,कभी बरसात
वहां पर सूखे गये है,अब जज्बात
हरे पत्तों में सूखी हुई है, अब डाल
अंधेरे ने कर ली, छद्म रोशनी ईजाद
वो अंधेरे कर रहे है,रोशनी की बात
उजाले बैठे है, एक कोने में चुपचाप
मैले हुए, जो मन थे कभी, बड़े साफ
किससे करे, अपने इस मन की बात
आजकल रिश्तों में नहीं रही वो बात
लहू भी बदल चुके,नायाब रंग लाल
उनमें मिल चुकी, स्वार्थ गंध बेहिसाब
सबके बदल चुके है, आज ख्यालात
जहां पर पैसा, वहां होती भीड़ आयात
जो गरीब है,करता है, सत्य की बात
वहां होता है, बस एकाकीपन निर्यात
छद्मता ने लील, ली, नैसर्गिकता साफ
आज का समय कलयुग है,जनाब
अपने ही साये लूट रहे, अक्स आज
टूट चुके वो शीशे, जिनमें थे, ख्वाब
किससे करे, अपने इस मन की बात
लोगों में तनिक भी मन न रहा,आज
हर रिश्ता हो चुका, आजकल अनाथ
अकेलापन भी अकेला हो रहा, आज
जिनको दी, कभी जान से बढ़ सौगात
वो ही दिखा रहे है, बुरे वक्त में,औकात
वाह रे खुदा, क्या यही इंसानियत जात
जो हाथ पकड़ता, उसे ही मारती है, लात
किससे क्या करे, अपने मन की बात
यहां अपना मन ही लगाकर बैठा,घात
आओ छोड़ दे व्यर्थ के प्रपंच, बेहिसाब
एक बार दिल खोलकर करे, खुद से बात
अपने मन की बात, खुद से करे, आप
आप ही दोस्त, आप ही शत्रु है,जनाब
भीतर ही मिलेगा, स्व प्रश्नों का जवाब
भीतर ही सजदा, भीतर ही करे, आदाब
सारी दुनिया, से हमे क्या करनी बात
हमें तो करनी खुद की खुद से बात
खुद से करो,बस तुम एक बार संवाद
मिट जायेगा, जग का सारा वाद-विवाद
जो करना सीख जाते, खुद से बात
मिट जाते उसके तो सारे ही संताप
वो दुनिया में बन जाते है,आफ़ताब
जो अपने सिवा पराई न माने बात
जिसका खुद से होता है, नित संवाद
उसको हर जगह मिलती है,इमदाद
जिसका मन सिर्फ मौन रखता याद
उसके भीतर कई, लहरों की आवाज
वो ही लाखों की भीड़, में है, आजाद
जिसके भीतर जिंदाअपनी आवाज
आओ खुद की खुद से करे, हम बात
शूलों बीच उगा ले, जिंदादिल गुलाब।