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DrGoutam Bhattacharyya

Drama Inspirational

4  

DrGoutam Bhattacharyya

Drama Inspirational

परमानेंट एड्रेस (स्थायी पता)

परमानेंट एड्रेस (स्थायी पता)

2 mins
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एक बार जब लोग घर छोड़ देते हैं,

तो घर, बस एक 'मकान' बन जाता है।


शुरू शुरू में बेचने का मन नहीं होता , 

और बाद में जाने का मन नहीं होता।


समय इसके कुछ निवासियों को छीन लेता है।

कौन थे, क्या था, सब यादें बन जाता है।


यदि आप ऐसे आस-पड़ोस में घूमते हैं, 

आपको कई ऐसे ही स्थिति दिखाई देती है।


जो कभी थे जीवन से भरपूर, 

आज, न कोई चहल पहल, न कोई शोर।


अब या तो बदल दिए गए, या वैसे ही पड़े हुए हैं।

हम घर बनाने के लिए इतना प्रयास, तनाव क्यों करते हैं? 


हमारे बच्चों को इसकी जरूरत नहीं होंगे, 

या इससे भी बदतर, वे इसके लिए लड़ेंगे।


'स्थायी पता' सुरक्षित करने का प्रयास जो है? 

क्या यह इंसानी मूर्खता नहीं है? 


जीवन, यह अनिश्चित कार्यकाल के है, 

यह तो बस एक पट्टे पर लिया गया है। 


यह एक वैसे मकान-मालिक द्वारा दिया गया, 

जिनकी शर्तों पर समझौता नहीं किया जा सकता ।


लोग प्यार और  ई.एम.आई  से घर निर्माण करते रहेंगे। 

एक दिन या तो ध्वस्त हो जायेंगे, या फिर झगड़े होते रहेंगे।


हो सकता है, वह 'मकान' बेच दिया जाएगा, 

या फिर वह खंडहर में पड़ा रहेगा।


जब घर में रहने वाले होते हैं, तो हम प्राइवेसी चाहते है

और जब घोंसला खाली हो जाता, तो कंपनी चाहते हैं।


एक लोकप्रिय ज़ेन कहानी में एक बूढ़ा साधु था। 

वह एक दिन, एक राजा के महल में आया था। 


वह कहने लगा कि, इस 'सराय' में रात बिताना चाहता, 

पहरेदारों ने कहा, "क्या तुम्हें यह 'महल' दिखाई नहीं देता?"


बूढ़ा भिक्षु ने कहा, “मैं कुछ दशक पहले यहां आया था।

तब तो मेरे भाई, कोई और यहां रह रहा था।


कोई भी स्थान जहां रहने वाला बदलता रहता है, 

भाई मेरे, उस स्थान को 'सराय' ही कहलाता है। 


पक्षी और जानवर हम मनुष्यों पर हँस रहे होंगे , 

जब तक हम सराय को स्थायी निवास समझ लिया करेंगे।


जब भी कोई फॉर्म में 'परमानेंट एड्रेस' पुछा, तो भरता हूं, 

और, मन ही मन मैं, इंसानी मूर्खता पर मुस्कुराता हूं। 

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