STORYMIRROR

DrGoutam Bhattacharyya

Children Stories Classics Inspirational

4  

DrGoutam Bhattacharyya

Children Stories Classics Inspirational

स्वतंत्र इच्छा बनाम अदृष्ट

स्वतंत्र इच्छा बनाम अदृष्ट

2 mins
207

इस छोटी सी कविता को प्रारंभ करने से पहले,

 हाथ जोड़कर हृदय से प्रणाम करता हूं मैं।


मेरी गलतियों के लिए मुझे क्षमा करें, यदि कोई हो,

हो सकता है, मुझसे यह अनजाने में हुआ हो.


"किसी का मूल्यांकन मत करो," सनातनी शास्र कहते हैं, 

क्योंकि वास्तव में हमारे पास निर्णय करने की दृष्टि का अभाव है।


इसलिए, हमें यह कहावत सुनने को मिलती है:

'तुम न्याय नहीं कर सकते', वह कहती है।


क्या यहूदा ने अपनी स्वतंत्र इच्छा का प्रयोग किया था?

या, क्या वह सिर्फ नियति का मोहरा था? 


ईश्वर की इच्छा के खिलाफ साजिश, भला कोई कैसे कर सकता है?

और ओ भी ईश्वरके बेटे को नुकसान पहुँचाने के लिए?


यदि यहूदा ने मसीह के साथ विश्वासघात न किया होता,

भला दैवीय नाटक की पटकथा लिखी ही नहीं जा सकता।


मानव जाति के पापों को साफ़ करना,

परमेश्वर के पुत्र के लहू के द्वारा पूरा करना।


'स्वतंत्र इच्छा बनाम अदृष्ट' की बहस,

मानव मन बारम्बार पूछता रहता है बस।


जरा सोचिये, कैकेयी, जो राम से बहुत प्रेम करती थी,

वह इतनी हठपूर्वक 'निर्वासन' के लिए दबाव कैसे डाल सकती ?


पूज्य 'संत तुलसीदास' की व्याख्या दिया है,

राम एक दिव्य मिशन पर अवतार रूप में आये थे।


वह पृथ्वी को बुराई के बोझ से मुक्त करने आये थे,

यदि उन्होंने वनवास न लिया होता तो राक्षसों को कौन मारते?


जंगल में उनका संकट भरा प्रवास आवश्यक था,

घटनाओं का एक पूरा क्रम बाद में सामने आया था।


क्या कैकेयी, जो राम से इतना प्रेम करती थी,

निर्वासन की कठिनाई, क्या यह उसकी स्वतंत्र इच्छा थी?


बचपन में अगर वह रात को अचानक नींद से उठ जाते थे.

रोते हुए किशोर राम माता कैकेयी के पास ही जाना चाहते थे।


देवताओं अच्छी तरह जानते थे, कि वह ऐसा नहीं करेगी,

इस प्रकार, अन्त में यह काम 'ज्ञान की देवी' को दिया गया।


पुत्र स्नेहातुर राजा दशरथ इतने सदमे में आ गये,

राम के चले जाने के तुरंत बाद टूटे हुए पिता की मृत्यु हो गई।


राम, सर्वज्ञ, कैकेयी के प्रति कोई बैर भाव नहीं रखते है,

इसी तरह, यीशु के मन में भी यहूदा के प्रति कोई द्वेष नहीं है।


Rate this content
Log in