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Anushree Goswami

Drama Inspirational

5.0  

Anushree Goswami

Drama Inspirational

मंज़िलों की ख्वाहिशें

मंज़िलों की ख्वाहिशें

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मंज़िलों की ख्वाहिशें थीं,

मंज़िलें बनती गईं,

हम न टूटे, वो न टूटी,

राहें भी बनती गईं।


है पंछी तू किस चाह में,

तू एक दिन उड़ जाएगा,

खेल गगन में आँख मिचौली,

खुद खुदा को पाएगा।


है नदी तू किस चाह में,

तू एक दिन बह जाएगी

बाधाओं से लड़ती,

गिरती-संभलती,

समुद्र में मिल जाएगी।


है चित्रकार किस चाह में,

तेरा चित्र भी बन जाएगा,

तस्वीरें स्वप्न में आएँगी,

तू हकीकत में गढ़ जाएगा।


है कवि तू किस चाह में,

तू एक दिन लिख जाएगा,

जब मन में कई सवाल होंगे,

तू खुद जवाब बन जाएगा।


है मनुष्य तू किस चाह में,

मंज़िल खुद चल कर आएगी,

तेरी मेहनत को सर झुकाएगी,

तू देखता रह जाएगा।


मंज़िलों की ख्वाहिशें थीं,

मंज़िलें बनती गईं,

हम न टूटे, वो न टूटी,

राहें भी बनती गईं।


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