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sunayna mishra

Drama

4.5  

sunayna mishra

Drama

पिताजी

पिताजी

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308


जीवन की राहों के अद्भुत प्यार पिताजी।

मेरे मन - मधुबन के हरसिंगार पिताजी।


कर्त्तव्यों की गोद, पीठ, कन्धों पर अपने,

मुझे बिठा दिखलाते थे संसार पिताजी।


भूख, गरीबी, लाचारी की कड़ी धूप में,

ज्यों बरगद की छाया थे छतनार पिताजी।


अहसासों की ऊँगली से गढ़ते थे जीवन,

जीवन की मिट्टी के थे कुम्हार पिताजी।


इतने नाज़ुक मधुर, सरस कि लगते जैसे,

पुष्प दलों पे ओस बूँद सुकुमार पिताजी।


माँ तो गंगा - सी पावन होती है, लेकिन,

उतुंग हिमालय से ऊँचे पहाड़ पिताजी।


मुझे हवाओं में खुशबू बन मिल जाते हैं,

जाफरान - से अद्भुत खुश्बूदार पिताजी।


स्नेह आपका रामचरितमानस - सा उज्ज्वल,

देहाती, 'बकलोल', सहज, गँवार पिताजी।


जीवन - सागर के तट पर बस इन्तजार में,

बैठा हूँ इस पार, गए उस पार पिताजी।


स्मृतियों के दिव्य गगन के सूर्य शिरोमणि!

ऊर्जा बन, करते मन में संचार पिताजी।।


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