माँ
माँ
सभी त्यौहार तेरे बिन
माँ सुने से लगते है।
पीहर भी अब छूटा सा लगता है,
घर में अब सन्नाटा सा लगता है।
राखी हो या हो तीज, तेरे रहते ही भाते है
दाल भात और हलुआ पूड़ी बहुत याद आते है,
तू ना है तो माँ मुझको, अब कुछ भी नहीं सुहाते है।
तेरे आँचल की छाँव तले हम मुस्काया करते थे
ना जाने कितनी रातें, हँसी ठिठोली में बिताते थे।
तू बच्चा बन जाया करती थी, तेरी होंठों को हल्की सी मुस्कान सजाया करती थी,
तेरी आँखें सपने संजोया करती थीं, हम खुशी उसको पूरा करते थे ।
चूड़ी, बिंदी, पायल बिछिया, उपहार हमें दिया करती थी,
रहे सदा सुहाग अमर, यह आशीष हमें दिया करती थी।
तेरी सिखाई हर बात को मां, आँचल में बांध के रखती हूँ
तेरे दिए संस्कारों से ही, ससुराल में सम्मान मै पाती हूँ।
आकाश में चमकते तारे में, तुझको ही देखा करती हूं,
तेरे अक्स को पाकर ही, मैं रात में सो जाया करती हूँ।
यही तमन्ना है अब केवल, ईश्वर इतना उपकार करें,
हर जन्म में तू मिल जाये मुझे, हर जन्म में तेरा साथ रहे ।।
