दिसम्बर
दिसम्बर
छोटा सा सुखी परिवार लखनऊ में रहता था, हँसी खुशी के साथ जीवन व्यततीत हो रहा था परिवार का स्वामी यशोधर दीक्षित और पत्नी स्वरूपा दीक्षित आधुनिक विचारों के व्यक्ति थे, वे अपने पुत्र और पुत्री के उज्जवल भविष्य के लिए दिन रात परिश्र्म करते थे यूं ही जीवन चल रहा था कि एक दिन दीक्षितजी के बेटे के एक फैसले से परिवार की शांति भंग कर दी, उसने बिना बताए विवाह कर लिया और एक ऐसी लड़की से जो अपने माता पिता तक का आदर करना तो दूर उन्हें आत्महत्या की धमकी दे कर जेल में डलवाने की बात कहती थी, उसे भी दीक्षित दम्पति ने दिल पर पत्त्थर रख कर स्वीकार कर लिया, जैसा कि विदित है कि जिस लड़की में व्यावहारिक गुणों का अभाव हो वह क्या किसी निभा करेगी, शादी के दूसरे दिन उसने अपना रूप दिख दिया सबसे पहले रसोईघर पर अधिकार किया फिर दीक्षित जी मीठी मीठी बाते कर एकाउंट की जानकारी ली और समझ गयी कि किस तरह घर पर कब्जा जमाया जाए।
कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा फिर बहु की बेटी पैदा हुई इसे बेटे की उम्मीद थी इसलिए अपनी नाराजगी बेटी पर उतरने लगी उस अबोध बालिका को प्रताड़ित करने में कोई भी चूक नही करती उसकी बेटी राखी अभी एक वर्ष की ही थी यदि वह कपड़ो में शू-शू कर देती तो जेठ की भरी दोपहर में उसे तपते फ़र्द्ध पर नंगे पैर खड़ा कर देती मां के रूप में साक्षत राक्षसी का रूप थी।यदि दीक्षित दम्पती रोकने का प्रयास करते तो धमकी देती दहेज के इल्जाम में जेल भिजवा देंगे, दोनों सीधे साधे चूप रह जाते लेकिन अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते, जिस कारण दोनों को हृदय सम्बधी बीमारी हो गयी और दिसंबर के मनहूस दिन जब ये चंडालिक बहु बनकर इस घर मे आयी उसी दिन श्री दीक्षित जी स्वर्ग सिधार गए और लगभग 2 महीने के अंतराल में श्रीमती दीक्षित भी।