तू क्यूँ ना लौटा
तू क्यूँ ना लौटा
कबसे राह निहारू तेरी जाने कब तू आएगा
ना जाने कब गले लगाकर अखियन की प्यास बुझाएगा
तू बोला था मैं आऊँगा संग तुझे ले जाऊंगा
तू ना आँसू बहाना माँ बिन तेरे कहाँ रह पाऊँगा
बस एक बार तो जाए दे, हिम्मत जरा बढ़ जाने दे
मंज़िल मेरा दामन खींचे रोक नहीं चल जाने दे
सब संगी साथी गए मेरे, ना रुका यहाँ कोई संग मेरे
आज अगर जो ना निकला मैं अकेला रहूँगा यहा खड़े
तू काहे को डरती है वहाँ ना अंधी चलती है
ये सह वक़्त है जाने का या रुक जाने का पछताने का
है कसम तुझे ना भूलूँगा मैं पत्र लिखता जाऊंगा
क्या खाया और कैसे रहा हर एक बात बताऊंगा
पर तेरा पत्र नहीं आया तूने कुछ भी न बतलाया
कहाँ है और कैसा है तू ये कोई ना समझाया
अब बस तेरी हीं यादों में मैं दिन को काटा करती हूँ
तेरे बचपन की यादों में मैं सोती हूँ मैं जगती हूँ
क्या तूने अपना घर पुराना, बिना बताए बदल दिया
जो पति लेकर पहुंचा था हाँ उसने हीं ये कहबर दिया
हर रोज़ यही मैं आस लिए तस्वीर तुम्हारी हांथ लिए
मैं घंटो बैठी रहती हूँ चुप होती हूँ फिर रोती हूँ।