दोस्त-एक मित्र
दोस्त-एक मित्र
विभिन्न रिश्तों में एक ही रिश्ता
जिसका न कोई स्वरूप
हर रिश्ते को वो कर समाहित, सच्ची जग की सिखाता रीत।।
मात-पिता कभी भाई-बहन सा
गहन दुःख से भी लाता खींच
मुस्कान लौटता नीरस जीवन में, दोस्त की मित्रता में ऐसी प्रीत।।
साथ छोड़ते हर रिश्ते जब
वही निभाता प्रीत
कभी जीत-हार में न साथ छोड़ता, अद्भुत भाव की रखता नींव।।
पशु-पक्षी कभी इंसान भेस में
वो हारकर भी जाता जीत
मिसाल बनाता प्रेमभाव की ऐसी, आँख से, कठोरता-कट्टरता भी बहाती नीर।।