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PRADYUMNA AROTHIYA

Drama Others

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PRADYUMNA AROTHIYA

Drama Others

महोत्सव

महोत्सव

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परम्पराओं की जो अमिट छाप

हम सब लोगों की आत्माओं पर छपी है।

वो पीढ़ी दर पीढ़ी

किसी न किसी रूप में 

आगे बढ़ती जा रही है

वक़्त के साथ उसने रंग बदले हैं मगर

पवित्रता की वही छाप 

परम्पराओं के रूप में महोत्सव पर छपी है।


महोत्सव कोई भी हो

किसी जाति का हो

किसी धर्म का हो

किसी क्षेत्र का हो

किसी भाषा का हो

किसी परिवार का हो

किसी संघ का हो

वो जोड़ता है जिंदगी को जिंदगी से

इसी विश्वास की परम्परा 

पीढ़ी दर पीढ़ी चली है।

काँच से नाजुक रिश्ते हैं मगर

टूटते नहीं 

ठोकरें लगती हैं मगर

बिखरते नहीं

यही सच है

शायद इसलिए परम्पराओं की बुनियाद पर

महोत्सव की उम्र बढ़ी चली है।



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