किताबों में सिर्फ पन्ने नहीं थे
किताबों में सिर्फ पन्ने नहीं थे
किताबों में सिर्फ पन्ने नहीं थे
तजुर्बे भी बहुत थे
हम पढ़ सकते थे
अनपढ़ नहीं थे
जीवन के जिस मूल को
हम अक्सर भूल जाते थे
वो विश्वास के रहस्य अधूरे नहीं थे
हम चलते थे आवारा से
जैसे हमारे कोई घर नहीं थे
जीने के सायद
बचपन जैसे ढंग कहीं नहीं थे
उन पन्नों में
शब्दों के साथ साथ कई चित्र भी विचित्र थे
शायद कोई भार हमें दबा न दे
इसलिए उम्र के कद बड़े नहीं थे
किताबों के अंत में
कुछ पन्ने खाली नजर आते थे
शायद हम कुछ शब्द जोड़े अपनी जिंदगी में
यही सोच हम लिखने से बेखर नहीं थे।